देहरादून। उत्तराखंड के विभिन्न लोक कलाकारों ने सांस्कृतिक विभाग के महानिर्देशक द्वारा कलाकारों को केवल अपने ही जिले में प्रस्तुति देने के निर्णय पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है जहां हर क्षेत्र की अपनी विशिष्ट परंपराएं, बोलियां और सांस्कृतिक विरासत है। एक ही जिले में भी विविध सांस्कृतिक पहचान मौजूद हैं। ऐसे में यह निर्णय कि प्रत्येक जिले की सांस्कृतिक टीमों को केवल अपने जिले में ही कार्यक्रम दिए जाएंगे, तर्कसंगत नहीं है और यह गलत परंपरा की शुरुआत है।
कलाकारों का मानना है कि इससे अन्य जिलों की सांस्कृतिक विविधताओं, परंपराओं और लोक-रीतियों से वे अनभिज्ञ रह जाएंगे, जो कि राज्य की समृद्ध लोक-संस्कृति के आदान-प्रदान में बाधक है।
इसके साथ ही, कलाकारों ने गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को दो अलग-अलग खंडों में बांटने के निर्देश को भी अनुचित बताया है। उनका कहना है कि इससे दोनों क्षेत्रों की मिश्रित सांस्कृतिक प्रस्तुति और आपसी सांस्कृतिक मेलजोल पर असर पड़ेगा, जो कि प्रदेश की साझा सांस्कृतिक विरासत के लिए नुकसानदायक है।
लोक कलाकारों ने मांग की है कि सांस्कृतिक विभाग पूर्व की व्यवस्था को बहाल करे, जिसमें राज्यभर के कलाकार विभिन्न जिलों में अपनी प्रस्तुति दे सकें। साथ ही, उन्होंने लंबित भुगतानों का निपटारा भी जल्द से जल्द निर्देशालय स्तर से किए जाने की अपील की है।