उत्तराखंड, देहरादून। बृहस्पतिवार को संस्कृत विभाग के प्रेक्षागृह में कुलानन्द घनशाला द्वारा रचित गढ़वाली रामलीला ग्रंथ का लोकार्पण मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन राधा रतूड़ी के कर-कमलों के द्वारा सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्व लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने की।विशिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अनिल रतूड़ी, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के कुलपति संजय जसोला उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि राधा रतूड़ी ने गढ़वाली रामलीला के रचनाकार कुलानन्द घनशाला की प्रसंशा करते हुए कहा कि सभ्य मानव ही साहित्य की रचना करता है, और भाषा उसकी माध्यम है। रामायण हमारे सबसे प्राचीनतम ग्रन्थों में से एक है,जो देश ही नहीं विदेशों में भी रामलीला के माध्यम से जनमानस के दिलों दिमाग पर छाया हुआ है। हमारे देश में आज भी यह ग्रंथ घर -घर में लोकप्रिय है, गढ़वाली में इसका अनुवाद होने पर हमारी भाषा और संस्कृति को आगे बढ़ाने का अवसर प्राप्त होगा।
गढ़वाली भाषा में रामलीला के रचनाकार कुलानन्द घनशाला ने कहा कि आज से चालीस पैंतालीस साल पहले देहरादून में गुणानन्द पथिक द्वारा रचित गढ़वाली रामलीला हुआ करती थी,उस रामलीला को देख तथा सुनकर इस महान ग्रन्थ को गढ़वाली में लिखने की प्रेरणा मिली,आज चालीस वर्षों की मेहनत के बाद यहां रचना साकार हो पायीं है, इसमें तमाम रचनाकार,साहित्यकार,गीतकार, संगीतकारों का सहयोग है। ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, रामलीला कमेटी बाला वाला, रामलीला कमेटी नवादा का भी इसमें सहयोग रहा है जिनका मैं हृदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि सबसे पहले भीड़ के बीच में गाना गाने का अवसर हमें रामलीला मंचों से ही प्राप्त हुआ। हममें से ज्यादातर कलाकार,गीत,संगीतकार, रामलीला मंचों की पैदाइश है। युवा अवस्था में हम लोग रामलीला मंचों पर बन्दर, राक्षस आदि के छोटे-छोटे रोल किया करते थे और आज इन्हीं भूमिकाओं की बदौलत हमें बड़ा मंच मिला है। हमने सुझाव दिया है कि इसमें पात्र की वेषभूषा भी गढ़वाली थीम्स पर आधारित हो जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ेगी।निश्चित रूप से गढ़वाली भाषा के संरक्षक, संवर्धन में यह ग्रंथ मीलों का पत्थर साबित होगा।
रामलीला मंचन के शुरुआती दृश्य श्रवण लीला के मार्मिक गढ़वाली गीत ने लोगों को भावविभोर कर झकझोर किया, सीता स्वयंभर से कैकेई का राजा दशरथ से वर मांगना, तथा भगवान राम का वनवास जाना आदि दृश्यों को गढ़वाली बोली – भाष तथा गीतों के माध्यम से प्रस्तुति ने कार्यक्रम में वाहवाही लूटी।
कार्यक्रम में पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के कुलपति संजय जसोला, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार गणेश कुकशाल गणी ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना,राठ जनविकास समिति के अध्यक्ष मेहरवान सिंह गुसाईं, पुरूषोत्तम मंमगाई, गीतकार संगीतकार ओम् बधानी,साहित्यकार मदन मोहन ढुकलान,आदि सैकड़ों की संख्या में संस्कृति प्रेमी उपस्थित रहे।