एनजीटी के नाम बस्ती बचाओ आंदोलन का पत्र: रसूखदारों को बख्शा, गरीबों को निशाना बनाया जा रहा है

Share on Social Media

देहरादून। बस्ती बचाओ आंदोलन उत्तराखण्ड ने रजिस्ट्रार, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को एक पत्र भेजते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं कि देहरादून में रिस्पना और बिंदाल नदियों के फ्लड ज़ोन को लेकर जारी कार्यवाही में केवल गरीबों को ही निशाना बनाया जा रहा है, जबकि प्रभावशाली और रसूखदार लोगों के अवैध निर्माणों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

पत्र में कहा गया है कि बीते दो वर्षों से एनजीटी में इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। पिछले वर्ष रिस्पना नदी क्षेत्र में 500 से अधिक गरीबों के मकानों को चिन्हित कर उनमें से कई को भारी पुलिस बल के साथ ढहा दिया गया, जिससे सैकड़ों परिवार आज तक बेघर हैं। इस वर्ष इसी तरह की कार्यवाही बिंदाल नदी क्षेत्र में भी शुरू की गई है, जहां बड़ी संख्या में गरीबों के घरों को जून तक ध्वस्त करने की तैयारी है।

आंदोलन के संयोजक अनन्त आकाश ने पत्र में कहा है कि प्रशासन एनजीटी के आदेशों की आड़ में केवल गरीब तबके को ही बलि का बकरा बना रहा है। आश्चर्य की बात है कि राज्य विधानसभा, दूरदर्शन कार्यालय, पुलिस अधिकारियों के आवास जैसी कई विशाल इमारतें भी इसी फ्लड ज़ोन में आती हैं, लेकिन इन्हें छुआ तक नहीं गया।

आंदोलनकारियों ने स्पष्ट किया कि वे पर्यावरण संरक्षण के पक्षधर हैं, लेकिन देहरादून में अनियोजित विकास, कॉरपोरेट हितों के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और सत्ता से जुड़े लोगों की मिलीभगत से दून घाटी अपने प्राकृतिक स्वरूप को खो रही है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों और पर्यावरण को हो रहा है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि सरकार द्वारा यह तर्क देना कि 2016 के बाद बसने वाले लोग अवैध हैं, तथ्यहीन है क्योंकि इन्हीं लोगों को प्रशासन ने बिजली, पानी, राशन कार्ड, वोटर आईडी और निवास प्रमाण पत्र जैसी नागरिक सुविधाएं दी हैं। स्थानीय निकाय चुनावों में इन्हीं नागरिकों के वोटों से जनप्रतिनिधि चुने गए और सरकार ने खुद एक समय अध्यादेश लाकर इन बस्तियों को संरक्षण देने की बात कही थी।

बस्ती बचाओ आंदोलन ने एनजीटी से की ये मांगें:

  1. प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक आवास या जमीन दी जाए।
  2. बुनियादी सुविधाएं (पानी, बिजली, सड़क) बहाल की जाएं।
  3. नुकसान की भरपाई की जाए यदि मकान तोड़े गए हैं या रोज़गार प्रभावित हुआ है।
  4. पर्यावरणीय क्षति के लिए सरकार पर जुर्माना लगाकर पीड़ितों को राहत दी जाए।
  5. रिस्पना-बिंदाल को नो-डेवलपमेंट जोन घोषित कर हरित क्षेत्र विकसित किया जाए।
  6. नदी क्षेत्र में अवैध निर्माणों की जांच समान रूप से हो, केवल गरीबों को निशाना न बनाया जाए।
  7. L6 रोड या अन्य परियोजनाओं के लिए यदि जमीन अधिग्रहित की गई है, तो भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत उचित मुआवजा और पुनर्वास मिले।
  8. परियोजनाओं से पहले सार्वजनिक सुनवाई कर स्थानीय लोगों की सहमति ली जाए।
  9. नदी के प्रदूषण से प्रभावित लोगों को स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए।

अंत में आंदोलन ने एनजीटी से अपील की है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर गरीबों को न्याय दिलाए और उत्तराखंड सरकार को एकतरफा और पक्षपाती कार्यवाहियों से रोके।

By Jagriti Gusain

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *