ऐसे राज्य में जहां एक गठबंधन सरकार को बना या बिगाड़ सकता है, वहां राजनीतिक स्थिरता की कभी भी स्थाई गारंटी नहीं हो सकती. महाराष्ट्र इसका एक प्रमुख उदाहरण है. पूर्व सीएम देवेंद्र फडनवीस (Devendra Fadnavis) के शब्दों में कहें तो 2019 में शिवसेना के बीजेपी की ‘पीठ में छुरा घोंपने’ के बाद पार्टी अपना ‘बदला’ पूरा करने में कामयाब रही है. वहीं अजित पवार की ताजा बगावत ने महा विकास अघाड़ी (MVA) में गंभीर दरारें उजागर कर दी हैं. इस तीन-पक्षीय मोर्चे को 2019 के चुनावों के बाद भाजपा का मुकाबला करने के लिए गठित किया गया है. गौरतलब है कि 2019 में चुनाव नतीजों के बाद सीएम पद के मुद्दे पर शिवसेना ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया और एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाई. हालांकि वैचारिक रूप से भिन्न ये पार्टियां भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने में कामयाब रहीं.
बीजेपी का ‘बदला’
2019 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा शिवसेना के ‘विश्वासघात’ के बाद अपने हाथ मलते रह गई थी. एमवीए कुछ समस्याओं के बावजूद पहले कुछ साल तक सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही. हालांकि 2022 में शिवसेना में एक बड़ा विभाजन देखा गया. जब एकनाथ शिंदे और 39 अन्य विधायकों ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह किया और भाजपा से हाथ मिला लिया. जबकि शिवसेना एमवीए में सबसे बड़ी पार्टी थी. शिवसेना के अधिकांश विधायकों के दलबदल के कारण एमवीए सरकार गिर गई. जिससे उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
शिवसेना के बाद एनसीपी का नंबर
इसके बाद एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेन्द्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनाकर शिवसेना-भाजपा सरकार बनाई गई. कई राजनीतिक नेताओं ने शिवसेना में विभाजन की साजिश रचने के लिए फडणवीस को श्रेय दिया. भाजपा नेता फडणवीस ने खुद शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बात कबूल की और इसे ‘बदले की कार्रवाई’ बताया. इसके बाद अजित पवार और 8 अन्य विधायकों के महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने के बाद एनसीपी अब इसी तरह के संकट का सामना कर रही है. अजित पवार ने कहा है कि उनकी पार्टी के लगभग सभी विधायक महाराष्ट्र सरकार का समर्थन करेंगे, हालांकि उनके चाचा शरद पवार ने इन दावों को खारिज कर दिया है.
सुप्रिया सुले की पॉवर बढ़ने से अजीत पवार हुए मजबूर
सूत्रों के अनुसार सुप्रिया सुले की पार्टी में पदोन्नति ने अजीत पवार के सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन में शामिल होने का फैसले लेने को मजबूर कर दिया. अजित पवार के शामिल होने से महाराष्ट्र सरकार में भाजपा की स्थिति मजबूत होने की उम्मीद है. अगर अजित पवार अधिकांश एनसीपी विधायकों को अपने साथ लाने में सफल हो जाते हैं, तो भाजपा शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के साथ कड़ी टक्कर ले सकती है और यहां तक कि फडणवीस के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए भी दबाव बना सकती है. फिलहाल, कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी सरकार के कार्यभार संभालने के 3 साल बाद अब प्रभावी रूप से भाजपा-शिवसेना-एनसीपी सरकार सत्ता में है.