उत्तराखंड,देहरादून। जब किसी देश की मुख्यधारा की राजनीति में धर्म एवं राजनीति का घालमेल हो जाये तो यह लोकतांत्रिक माहौल को न केवल छिनभिन कर देती है बल्कि वहाँ रहे अल्पसंख्यकों ,मीडिया तथा मानवाधिकारों के लिऐ गम्भीर चुन्नौती बन जाती है ,यही सब कुछ भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम एवं ईसाईयों तथा बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ हो रहा है ।
भारत हो या बांग्लादेश की शीर्ष राजनीति इस स्थिति को सुलझाने के बजाय ,हवा देकर दोनों देशों में साम्प्रदायिक जहर फैलाने में लगे हैं। इसके लिये भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा बांग्लादेश में कट्टरपंथी समान रूप से जिम्मेदार हैंं, जो कि उनकी राजनीति के लिऐ अनुकूल माहौल बनाते हैं।इस चाल में भारत एवं बांग्लादेश की भोली भाली जनता आ रही है ,इसमें समाज का वह तबका भी शामिल है ,जिसके सामने साम्प्रदायिक एवं कोरपोरेटपरस्त नीतियों के चलते दो जून की रोटी का संकट खड़ा है तथा जिनके पास सर ढ़कने के लिऐ क्षत तक नहीं है जिनका भविष्य लगभग असुरक्षित है ।
इस प्रकार दोनों देशों में पूंजीवाद का खेल जारी है ।
यह समझना होगा कि धर्म आधारित राजनीति चाहे वह भारत में हो ,या बांग्लादेश या फिर इस्लामाबाद में हो या अफगानिस्तान में आमजन के हित में नहीं है । धार्मिक कट्टरता के चलते समाज का वह हिस्सा जो अन्धभक्त हो गया है वह हिंसा का सहारा लेकर बहुसंख्यक का अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ा रहा है पहले भी पाकिस्तान में सिखों व हिन्दुओं पर हुऐ हमले वहां के कट्टरपंथियों द्वारा सही ठहराये गये थे ,अब भारत में 2014 के बाद केन्द्रीय सत्ता में मोदी सरकार के संरक्षण में आयेदिन अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो रहे हैं और हमलों को लगातार जायज ठहराया जा रहा है ।
आज लोगों की रोजी रोटी का मसला हल करने के बजाय भारत में मस्जिदों के नीचे मन्दिरों को ढूंढ़ने का कार्य जोरों पर है जिसके लिऐ न्यायालयों के विवादास्पद फैसलों का सहारा लिया जा रहा है । न्यायधीश विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम का हिस्सा बन रहे है तथा संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ कर मनुष्य खासकर अल्पसंख्यकों के मौलिक एवं धार्मिक अधिकारों पर हमले हो रहे हैं , जो कि हमारी सांझी शहादत सांझी विरासत की परम्परा पर हमला है ।
आज वे लोग देशभक्ति तय कर रहे हैं जो आजादी के आन्दोलन में अंग्रेजों के लिऐ मुखबिरी किया करते थे । होना यह चाहिए था कि हमारी मोदी सरकार द्वारा बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हो रहे हमलों को रोकने के लिऐ बांग्लादेश सरकार पर कूटनीतिक तरीके से दबाव बनाती किन्तु हमारी सरकार बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हो रहे हमलों को रूकवाने के बजाय हिन्दुस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों की दबाव की राजनीति कर दोहरा खेल खेल रही है।सही मायनों में हमारी सरकार इस अवसर का लाभ साम्प्रदायिक राजनीति का खेल खेलकर महगांई ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार से जैसे मुख्य मुद्दों से ध्यान भटका कर अपनी सोची समझी नीति के तहत पूंजीवादी घरानों के हितों को पूरा कर रही है।
बांग्लादेश के मुद्दे पर वामपंथी दलों खासकर सीपीआई (एम)तथा बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी का शान्ति ,आपसी सदभाव,भाईचारे के लिए निरन्तर प्रयास एक जिम्मेदार राजनैतिक पार्टी की भूमिका कट्टरपंथियों एवं साम्प्रदायिक तत्वों को राश नहीं आ रही है ,इसलिये वे कम्युनिस्टों पर हमलावर रूख अपनाये हुऐ हैं।
बहरहाल बांग्लादेश के चहुमुखी विकास के लिऐ सर्वप्रथम शान्ति एवं आपसी भाईचारा जरूरी है जो हिन्दू मुस्लिमों की व्यापक एकता से ही सम्भव है इसलिये शांति एवं सदभाव आपसी भाईचारे के प्रयास जरूरी हैं, जिसके लिये जनता के मध्य व्यापक एकता बनाकर साम्राज्यवादी अमेरिका तथा उससे जुड़े साम्प्रदायिक एवं फूटपरस्त ताकतें चाहे वह बाग्लांदेश या उससे बाहर हो, को जनता के बीच से अलग थलग करना जरूरी हो गया ।
शांति एवं सदभाव के सन्दर्भ में हो रही हरेक पहल को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ।बांग्लादेश के साथ दशकों से हमारे अभिन्न सम्बन्ध रहे हैं ,तथा इस देश(बांग्लादेश) के निर्माण में हमारे देश की जनता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ,जिसे फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है ।