देहरादून। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सख्त भू कानून लाने की घोषणा को महज एक प्रचारात्मक कदम बताया है और सवाल उठाया है कि उत्तराखंड में पहले से मौजूद भू कानून, जिसे 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार ने लागू किया था, उसे कमजोर करने का जिम्मेदार कौन है?
कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि 2003 में तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि प्रबंधन अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन कर उत्तराखंड में भू कानून बनाया था। इस कानून के तहत राज्य से बाहर का व्यक्ति अधिकतम 500 वर्ग मीटर आवासीय भूमि खरीद सकता था, जबकि उद्योग या चिकित्सा क्षेत्र के लिए साढ़े बारह एकड़ भूमि, सरकार की अनुमति से, खरीदी जा सकती थी। साथ ही, भूमि का उपयोग बदलने पर वह राज्य सरकार में निहित हो जाती थी।
धस्माना ने बताया कि 2007 में भाजपा सरकार ने इस कानून में संशोधन कर आवासीय भूमि की सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया, लेकिन तिवारी सरकार का भू कानून 2017 तक लागू रहा। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने 2018 में इस कानून की मूल भावना को समाप्त कर दिया, जिससे साढ़े बारह एकड़ की सीमा हटा दी गई और भूमि प्रयोजन बदलने पर सरकार में निहित होने की शर्त भी खत्म कर दी गई। 2022 में धामी सरकार ने बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदने की अनुमति की आवश्यकता भी समाप्त कर दी।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इन बदलावों के कारण 2018 से 2024 के बीच बाहरी व्यक्तियों ने बड़े पैमाने पर उत्तराखंड में भूमि खरीदी। धस्माना ने मांग की कि 2017 से 2024 तक हुई जमीन की खरीद-फरोख्त की जांच हो और भू कानून पर श्वेत पत्र जारी किया जाए।
धस्माना ने देहरादून में हालिया सांप्रदायिक तनाव पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह घटना सुनियोजित साजिश का हिस्सा लगती है। उन्होंने शरारती तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और आरोप लगाया कि पुलिस के संरक्षण में सत्ताधारी लोग अराजक तत्वों के साथ जुलूस निकाल रहे हैं, जो शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार राजधानी में शांति व्यवस्था कायम नहीं रख पा रही है, तो यह उसकी विफलता है।